क्यों हो, अनुच्छेद 370 की बहाली
- By Krishna --
- Monday, 12 Sep, 2022
Why, the restoration of Article 370
घाटी और कांग्रेस छोड़ चुके गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) के बीच एक रिश्ता है। आजाद घाटी से हैं, लेकिन बरसों तक कांग्रेस में राष्ट्रीय राजनीति करते रहे आजाद आजकल अगर अपनी जड़ें घाटी में जमाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं, तो यह इस बुजुर्ग नेता की लोहा लेते रहने की जिद का ही परिचायक है। आजाद का रूख अपने विरोधियों के प्रति भी सकारात्मक रहा है, लगता रहा है कि वे एक लाइन से आगे नहीं बढ़ते। उनकी भाषा और बोली भी हमेशा अपने विरोधियों के प्रति संयत रहती है। घाटी के नेता ने दिल्ली की गर्मी में भी खुद को अगर कूल बनाए रखा है तो लगता है यह भी भविष्य की तैयारी के मद्देनजर एक खूबसूरत कवायद थी। आजाद आजकल घाटी में लोगों को जोडऩे में जुटे हैं, वे जल्द अपनी पार्टी की घोषणा करने का ऐलान कर चुके हैं। उनकी सभाओं में भारी भीड़ जुट रही है और वे लोगों को कोई सब्जबाग नहीं दिखा रहे, बस जो सामने है उसी को धो-मांज कर पेश कर रहे हैं। आजाद का एक बयान खूब चर्चा में है, जोकि घाटी के लोगों को उस सच्चाई से वाकिफ कराने की कोशिश है, जिसके संबंध में अन्य राजनीतिक दल जनता को भ्रमित किए हुए हैं। यह बयान अनुच्छेद 370 (Article 370) की बहाली को लेकर है। घाटी में विरोधी राजनीतिक दलों का एक ही नारा हो गया है कि वे इस अनुच्छेद की बहाली कराएंगे। लेकिन अब आजाद ने जो कहा है, वह सच में जनता की आंखें खोलने वाला है। उन्होंने साफ कहा है कि इस अनुच्छेद की वापसी नहीं होगी, इसे बहाल नहीं कराया जा सकता।
आजाद (Azad) का कहना है कि कश्मीरी इसके सपने देखना छोड़ दें कि अनुच्छेद 370 (Article 370) वापस आ जाएगा। दरअसल, इस अनुच्छेद ने कश्मीर के नेताओं को बेशक बहुत कुछ दिया हो, लेकिन आम जनता को इससे कुछ नहीं मिला है। आम जनता ने इस अनुच्छेद की मार ही झेली है। जोकि आतंकवाद के रूप में, अलगाववाद के रूप में, गरीबी-बेरोजगारी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव और तमाम दूसरे तरह से है। हालांकि अब विपक्षी दल गुपकार जैसे गठजोड़ बनाकर इस अनुच्छेद की बहाली के लिए प्रस्ताव पास कर रहे हैं और देश एवं घाटी के लोगों को यह बता रहे हैं कि वे इस अनुच्छेद को वापस लेकर आएंगे। इनमें घाटी के एक-दो प्रमुख दलों के अलावा कांग्रेस व देश की विपक्षी पार्टियां शामिल हैं। आजाद अब अगर यह बात कह रहे हैं तो वे केंद्र में सत्तासीन भाजपा के विरोध में यह बात कहते नजर नहीं आ रहे हैं। वे घाटी के लोगों की वकालत करते हुए नजर नहीं आ रहे हैं, कि उन्हें अगर राजनीतिक ताकत मिली तो वे इस अनुच्छेद को वापस ले आएंगे। अनुच्छेद 370 (Article 370) को हटाने का प्रस्ताव संसद में दो तिहाई बहुमत से पारित किया गया था। पिछले आठ सालों में देश में पहली बार इतना प्रचंड बहुमत किसी एक राजनीतिक दल को हासिल हुआ है। अगर भाजपा के पास इतनी सीटें नहीं होती तो क्या वह इस अनुच्छेद को हटा सकती थी? इसका जवाब न ही होगा।
अब आजाद (Azad) का कहना है कि कश्मीरी भाई-बहन उन नेताओं की बातों में न आएं। वे कश्मीरियों को अपनी राजनीति के लिए गुमराह कर रहे हैं। आप सभी को पता है कि जब तक संसद में दो-तिहाई सांसद इसके समर्थन में नहीं आता, तब तक कश्मीर में अनुच्छेद-370 (Article 370) बहाल करना नामुमकिन है। बकौल, आजाद वे लोगों को इसके नाम पर गुमराह नहीं करेंगे। उनका यह भी कहना है कि नेताओं द्वारा किए गए राजनीतिक शोषण ने कश्मीर में एक लाख लोगों की जान ली है। पांच लाख बच्चों को अनाथ किया है। आजाद कहते हैं, वे झूठ और शोषण पर वोट नहीं मांगेंगे। वे वही बोलेंगे, जो हासिल किया जा सकता है, भले ही इससे उन्हें चुनाव में नुकसान हो। आजाद का यह कथन राजनीति की सच्चाई को जाहिर करता है। आज के समय राजनीति यही हो गई है कि कैसे जनता को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में किया जाए। फिर इसके लिए ऐसे वादे भी क्यों न करने पड़ें, जिन्हें पूरा करने में सरकारी खजाने की सेहत वेंटिलेटर पर पहुंच जाए है। हो सकता है, एक राजनीतिक दल के मुखिया भी जल्द घाटी में रैली या प्रचार के लिए पहुंचे और वहां वे मुफ्त बिजली-पानी देने का ऐलान करें। यह भी संभव है कि वे घाटी के स्कूल-अस्पताल बेहतर करने की बात कहकर वोट मांगें। घाटी की जरूरत भी शुरू से इन चीजों की रही है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा जरूरत घाटी को भरोसे की रही है। आखिर यह फितूर किसने घाटी के लोगों के दिलो दिमाग में भरा होगा कि उनके हित पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने में ज्यादा हैं। आजतक घाटी में आतंकवाद, बेरोजगारी-बेहाली ही होती आई है। लेकिन अनुच्छेद 370 (Article 370) को हटा कर केंद्र सरकार ने जहां घाटी को बाकी देश से सीधे जोड़ा है वहीं आतंकवाद पर भी कड़ा प्रहार किया है। अब घाटी के हालात सुधरने लगे हैं और ऐसा इन्हीं उपायों और प्रयासों के जरिए हुआ है।
बेशक वह आजाद हों, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला या फिर कोई अन्य नेता, उन्हें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि अब घाटी का मिजाज बदल गया है। किसी राजनीतिक हथकंडे के रूप में अनुच्छेद 370 (Article 370) की वापसी की उम्मीद बंधाते हुए जनता को गुमराह करना अब बंद करना ही होगा। विरोधी राजनीतिक दल अगर इतना बहुमत जुटा भी लें कि वे इस अनुच्छेद को बहाल करने की सोचें, लेकिन देश की जनता और विशेष रूप से घाटी की जनता उन्हें इसकी इजाजत कभी नहीं देगी। इस अनुच्छेद की बहाली का भी कोई औचित्य नहीं है। घाटी के राजनीतिक दलों को यह बताना होगा कि क्या वे वास्तव में घाटी में शांति चाहते हैं, रोजगार और तरक्की चाहते हैं। अगर वे ऐसा सच में चाहते हैं तो फिर उन्हें अनुच्छेद 370 (Article 370) की बहाली का राग बंद करना होगा। घाटी में राजनीति करने के लिए और भी मुद्दे हैं, जनता को बेहतर जीवन और सुरक्षा देने की चाह अगर राजनीतिक रखेंगे तो वे कामयाबी भी हासिल करेंगे और प्रदेश पर शासन भी। गुलाम नबी आजाद से घाटी और देश को बड़ी उम्मीदें हैं, वे उस खाई को भरने का काम कर रहे हैं, जोकि घाटी और शेष भारत के बीच कायम कर दी गई है। घाटी और देश के लोग यह सब देख रहे हैं।